धर्म एवं दर्शन >> ज्ञान-रश्मि (दोहावली) ज्ञान-रश्मि (दोहावली)आर. पी. कर्मयोगी
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प्रस्तुत है ज्ञान-रश्मि दोहावली
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सुख सब चाहते हैं, पर वे यह नहीं जानते कि सुख का स्रोत अन्दर है, न कि बाहर। बाहर के साधन तो उसके चुम्बकत्व से खिंचकर अनायास ही उसके आस पास इकट्ठे हो जाते हैं। इसके लिए लूट-खसोट् बेईमानी और रिश्वतखोरी नहीं करनी पड़ती। जीवन में सुख ही सबकुछ नहीं है जहाँ सुख है वहाँ दुःख भी है। दुखो से दूर मत भागो, कठिनाइयों से मत डरो इनसे अवरोध तो होता है, पर इतना नहीं कि प्रबल पुरुषार्थ से उसका सामना न हो सके। व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे और परिपूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करे तो प्रगति का मार्ग स्वयं खुल जाता है।
हम मनुष्यता के महान गौरव के अनुरूप अनुकरणीय जीवन जीएँ तथा दूसरों को भी इस ओर अग्रसर करें ऐसे उच्चस्तरीय दृष्टिकोण के आधार पर ही मनुष्यता की महानता निर्भर है।
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